ज्ञानम: क्या हैं इसकी परिकल्पना क्यों की गयी ? ज्ञान की न सीमा हैं! न अंत: जिस प्रकार ब्रह्मांड का कोई छोर नहीं उसी प्रकार ज्ञान का भी कोई छोर नहीं !ज्ञान अज्ञान के अँधेरे में प्रकाशित सूर्य हैं ! जिस प्रकार सूर्य ब्रम्हाण्ड की हर आकाशगंगा के प्रकास का केंद्र हैं ! उसी प्रकार ज्ञान मनुष्य के प्रकाशित होने का केंद्र हैं ! इस प्रकाश की भी अनेक किरणे हैं ! और ये किरणे मनुष्य के उत्थान के मार्ग को प्रकाशित करती हैं ! ज्ञानम: के माध्यम से हमने कोशिश की हैं कि, ज्ञान के कुछ आयामों को आपसे सांझा किया जाए ! लेकीन ध्यान रखे ये मेरा ज्ञान हैं ! जो आपकी बुद्धि और तर्क से परे हो सकता हैं ! क्योकि ज्ञान अनुभव की सीमा पर आधारित हैं ! यदि आपको अपार अनुभव मुझ से ज्यादा हैं तो संभव हैं की आपका ज्ञान मुझसे कही अधिक विशाल होगा ! किन्तु ज्ञान किसी से भी मिले ग्रहण अवश्य करना चाहिये फिर अपने तर्क और अनुभव के आधार पर उस ज्ञान का विश्लेषण करके उसे अपने पास रखना चाहिये यदि उक्त ज्ञान आपके तर्क और अनुभव के आधार पर सही नहीं हैं तो उसे उतनी वरीयता नहीं देना चाहिये ! किन्तु ज्ञान कही से कभी भी प्
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