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ज्ञानम: क्या हैं इसकी परिकल्पना क्यों की गयी

ज्ञानम: क्या हैं इसकी परिकल्पना क्यों की गयी ?

ज्ञानम: क्या हैं इसकी परिकल्पना क्यों की गयी ?



ज्ञान  की न सीमा हैं! न अंत: जिस प्रकार ब्रह्मांड का कोई छोर नहीं उसी प्रकार ज्ञान का भी कोई छोर नहीं !ज्ञान अज्ञान के अँधेरे में प्रकाशित सूर्य हैं ! जिस प्रकार सूर्य ब्रम्हाण्ड की हर आकाशगंगा के प्रकास का केंद्र हैं ! उसी प्रकार ज्ञान मनुष्य के प्रकाशित होने का केंद्र हैं ! इस प्रकाश की भी अनेक किरणे हैं ! और ये किरणे मनुष्य के उत्थान के मार्ग को प्रकाशित करती हैं ! 

ज्ञानम: के माध्यम से हमने कोशिश की हैं कि, ज्ञान के कुछ आयामों को आपसे सांझा किया जाए ! लेकीन ध्यान रखे ये मेरा ज्ञान हैं ! जो आपकी बुद्धि और तर्क से परे हो सकता हैं ! क्योकि ज्ञान अनुभव की सीमा पर आधारित हैं ! यदि आपको अपार अनुभव मुझ से ज्यादा हैं तो संभव हैं की आपका ज्ञान मुझसे कही अधिक विशाल होगा ! किन्तु ज्ञान किसी से भी मिले ग्रहण अवश्य करना चाहिये फिर अपने तर्क और अनुभव के आधार पर उस ज्ञान का विश्लेषण करके उसे अपने पास रखना चाहिये यदि उक्त ज्ञान आपके तर्क और अनुभव के आधार पर सही नहीं हैं तो उसे उतनी वरीयता नहीं देना चाहिये ! किन्तु ज्ञान कही से कभी भी प्राप्त होना अतिश्युक्ति नहीं होता, इसके पीछे तर्क ये हैं की गुरु दत्तात्रेय ने 24 गुरुओ से ज्ञान प्राप्त किया जिसमे जिव,निर्जिव् आदि सभी शामिल थे ! 

 किंचित मात्र भी अहंकार छोड़ दीजिये, और बहिये ज्ञानम्: की इस ज्ञान गंगा में जिसका आरम्भ धर्म से होगा और अंत अभी तक निश्चित नहीं! लेकिन एक बात निश्चित हैं, कि, यह ज्ञानम: गंगा आपको विकास के अथाह समुद्र तक अवश्य लेकर जायेगी ! जहा आपका आत्मीय विकास, बोद्धिक विकास एवं आपके तर्क को तीव्रता मिलेगी साथ ही ज्ञान के प्रकाशपुंज की और आप अगर्सर होते जायेंगे ! 

ज्ञानम: पर आपको धर्म से लेकर ब्रम्हाण्ड तक की जानकारियों से अवगत कराना हमारा उद्धेश्य होगा, ज्ञान अंतहीन हैं इसलिए कदाचित ये निर्धारित कर पाना की “ ज्ञानम:” से आपको क्या-क्या और किन-किन विषयों की जानकारी मिलेगी? संभव न हो पायेगा ! क्योकि समय,काल और परिस्थिति जीवन से कुछ विषय घटाती हैं तो कुछ विषय जोडती हैं ! ऐसे में आज सभी विषयों को पूर्ण स्पष्टता से परिभाषित कर देना अनुचित होने के साथ ही साथ असंभव सा प्रतीत होता हैं ! किन्तु ज्ञानम की द्रष्टि से मार्ग पूरा पता न हो और उस मार्ग के कुछ पढाव की किंचित जानकारी भी हो तो मार्ग पर चलना और उसे पार करना सरल हो जाता हैं ! 

ज्ञानम्: पर किन किन विषयों की जानकारी आपको प्राप्त होगीं? उसके संभावित विषय बिंदु इस प्रकार हैं ! 


धर्म अर्थ काम मोक्ष राज तंत्र विश्व ब्रम्हांड 

हालंकि, ज्ञान अनंत हैं! और इन आठ विषयों में उसे समाहित नहीं किया जा सकता ! इसलिए 9वें, अध्याय को पाठक / दर्शक के लिए प्रेषित किया हैं ! चुकीं, दर्शक और पाठक ही “ज्ञानम:” के संरक्षक हैं ! जैसे जैसे ज्ञानम: पर लेख लिखे जायेंगे वेसे वेसे इन आठ स्तम्भ की चर्चा करते चलेंगे ! 

उम्मीद हैं, हमारे पाठक तथा दर्शक “ज्ञानम:” का उचित संरक्षण करेंगे ! ज्ञान के इस प्रारूप में आपकी रूचि हैं और आपको ये प्रारूप पसंद आ रहा हैं ? तो इस प्रारूप को अपने प्रियजनों तक जरुर पहुचाये ! ताकि आपके मित्र, रिश्तेदार और आत्मन आपके जैसी तर्कबुद्धि तथा ज्ञान पा सके ! 

 ज्ञानम के इस क्षेत्र के पहले लेख में मैं आपका स्वागत करता हूँ ! आप हमारे साथ अविरल बने रहेंगे इस आशा के साथ ! आपका मंगल हों!!

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